by saurabh | Apr 23, 2018 | Hindi Poetry
Aangan me पीतल के पैमानों जैसी शाम ढली थी आँगन में हल्की-हल्की आग लगी थी लाल-गुलाबी आँगन में दुल्हन जैसी चलती किरणें शीश झुकाए सहमी-सीं पाजेबों की खनखन जैसी नई रोशनी आँगन में Want new articles before they get published? Subscribe to our Awesome Newsletter. E-mail...
by saurabh | Apr 23, 2018 | Hindi Poetry
Chaand hai ya Dil चाँद है या दिल? आग है कि खून? हो नब्ज़ हवा, आँखें अंगुलियाँ, रात है कि तेरा छिपा बदन? चाँद है या दिल? सफ़ेद चादर पे सफ़ेद कलाई! बर्फ-सी ठिठुरती, आग-सी गर्म, कांपती आँखों की बीमार शर्म! चाँद है या दिल? Want new articles before they get published?...