Hindi Poetry
Virasat me mila ek Ghar
Virasat me mila ek Ghar किसी ने बताया मुझे विरासत में मिला एक घर एक खंडहर जो मेरे विशाल संयुक्त परिवार का था मेरा था भी नहीं भी जहाँ मैं था इकाई मात्र बहुतेरों में अपनों में या ग़ैरों में शायद एक ही ईंट होती मेरी थोड़ा सा चूना टपकती भित्ति का चित्र जैसे मेरा चित्त मेरा...
Ek Vishal Sagar
Ek Vishal Sagar एक विशाल सागर जिसमें हाथ-पैर मारता एक प्राणी इतना फैला बृहद कि उस प्राणी का अस्तित्व शायद एक बूंद से भी कम है और वो सागर तुम हो जिसे इतना जाना पहचाना समीप से अपना जाना मोती के सीप से अब कहाँ विस्तृत हो गई हो व्यक्त से अव्यक्त स्मृति को विस्मृत हो गई हो...
Neend nahi Aati
Neend nahi Aati नींद नहीं आती है मुझे अक्सर रात-रात बदलता रहता हूँ करवटें जाने किस पर अधिक हैं मेरे माथे पर या बिस्तर पर सलवटें रात-रात उस कालिमा को घूरता हूँ जिसमें सिर्फ़ विध्वंस है स्वयं का अंत संसार का अंत किन्तु फिर भी है कुछ जो मरता नहीं मिटता नहीं रात-रात उस...
Lapata
Lapata लापता एक अधेड़-आयु वयस्क अपने आप से कहीं खोया-खोया अन्यमनस्क चेहरे पे झुर्रियों की ताज़गी जिनमें छिपी मुस्कानें अधजगी जिसकी जीत है समर्पण ध्यान से देखो किन्तु तो शीशे के जमे प्रकाश में एक और ताकता शीशा दर्पण में एक और दर्पण और कभी-कभी लगता व्योम में चक्रमान एक और...
Veh kesa Vyakti tha
Veh kesa Vyakti tha वह कैसा व्यक्ति था जो अपनी श्रद्धांजलि स्वयं लिख गया किस कारणवश? सत्य के प्रति निष्ठा या खुद की प्रतिष्ठा? स्वयं से भी अधिक उसे प्रेम था बस कुछ चुने हुए मनुष्यों से फिर भी मनुष्य में थी उसकी अपार निष्ठा रिक्तता का शौक था उसे गिलास के खाली होने पर...
Vo Dunia
Vo Dunia वो दुनिया जो हम-तुम खो चुके हैं वो खुले आसमान और सितारों के नीचे छत पर सोना वो नानी से रात को मूंझ की खाट पर बैठकर किस्से सुनना वो आँसू जो हम चालीस-पचास बरस के बच्चे रो चुके हैं वो दुनिया जो हम-तुम खो चुके हैं वो तांबे के कलशों में जमी हुई कुल्फ़ियाँ वो हलवाई...
Prarambh me hi Ant
Prarambh me hi Ant मेरे प्रारम्भ में ही मेरा अंत है उत्तरोत्तर उठते हैं गिरते हैं घर होते हैं विस्तीर्ण होते हैं विस्तृत स्थानांतरित ध्वस्त विस्थापित या उनके स्थान पर एक खुला मैदान या कारखाना या उपमार्ग नए भवन को नया पत्थर पुराने काष्ठ को नई अग्नि प्रज्ज्वल पुरातन...
Janamdin ki Bhent
Janamdin ki Bhent तुम्हारे जन्म दिवस पर नीरव में लपेटकर चुपचाप कुछ भेज रहा हूँ इस भेंट में आंसू हैं कुछ कुछ थोड़ा सा प्रायश्चित्त और बहुत सारा चित्त इसमें नमस्कार से जोड़े हुए हाथों की पूर्णता है कुछ आनंद की सुरभि बहुत सारी भूलों का सार और ढेर सारा आभार बहुत वजन है इस...
Dard
Dard Dard की कोई इन्तिहाँ नहीं होती वरना क्या चांदनी नहीं रोती Want new articles before they get published? Subscribe to our Awesome Newsletter.
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