Vo Dunia

वो दुनिया जो हम-तुम खो चुके हैं

वो खुले आसमान और सितारों के नीचे
छत पर सोना
वो नानी से रात को मूंझ की खाट पर बैठकर
किस्से सुनना
वो आँसू जो हम चालीस-पचास बरस के बच्चे
रो चुके हैं

वो दुनिया जो हम-तुम खो चुके हैं
वो तांबे के कलशों में जमी हुई कुल्फ़ियाँ
वो हलवाई की थड़ी पे गरमा-गरम जलेबियाँ
वो धोबी के घाट पर सोटों की धमाधम
वो आम के पेड़ों के नीचे बिखरी कैरियाँ
वो आँसू जो हम चालीस-पचास बरस के बच्चे
रो चुके हैं

वो दुनिया जो हम-तुम खो चुके हैं
अब तो बच्चे पतंगें भी विडियो-गेम्स पे उड़ा लेते होंगे
खेतों से कच्ची मूलियाँ भी व्ही पर चुरा लेते होंगे
अब तो ख़ालिस एहसास भी वर्चुअल हो लेंगे
थ्री-डी में साथियों को इमली के पेड़ों पे चढ़ा लेते होंगे
वो बचपन के साथी जो अब सदा के लिए
सो चुके हैं

वो दुनिया जो हम-तुम खो चुके हैं
वो गलियों में स्वच्छंद मस्ती से घूमना
अमरस और लस्सी बनाती दादी की साड़ी से झूमना
वो सरसों का साग और मक्की की रोटियाँ
वो बंदरों की जगह नीम की डालियों से लूमना
वो बचपन के साथी जो अब सदा के लिए
सो चुके हैं

वो दुनिया जो हम-तुम खो चुके हैं

Want new articles before they get published?
Subscribe to our Awesome Newsletter.