Prarambh me hi Ant

मेरे प्रारम्भ में ही मेरा अंत है
उत्तरोत्तर
उठते हैं
गिरते हैं घर
होते हैं विस्तीर्ण
होते हैं विस्तृत
स्थानांतरित ध्वस्त विस्थापित
या उनके स्थान पर
एक खुला मैदान
या कारखाना या उपमार्ग
नए भवन को नया पत्थर
पुराने काष्ठ को नई अग्नि
प्रज्ज्वल
पुरातन अग्नि को राख
और राख को पृथ्वी
जो पहले से ही है
मांस, चर्म और मल
मनुष्य और पशु की अस्थियाँ
मक्के की डाली और पत्तियाँ
गृह होते जाते हैं जीवित और मृत
काल होता है एक
निर्माण का
और काल होता है
जीने का और जनन का
और काल होता है फिर
कांच की ढीली खिड़की के
झोंकों से टूट जाने का
और दीवारों के तख्तों का
चूहों के पैरों से थरथराने का
और नीरव के सिद्धांत पर
बनाये गए लटकते परदे
कंपाने का

(एलियट से)

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