Veh kesa Vyakti tha

वह कैसा व्यक्ति था
जो अपनी श्रद्धांजलि
स्वयं लिख गया

किस कारणवश?
सत्य के प्रति निष्ठा
या खुद की प्रतिष्ठा?

स्वयं से भी अधिक
उसे प्रेम था बस
कुछ चुने हुए मनुष्यों से
फिर भी मनुष्य में थी
उसकी अपार निष्ठा

रिक्तता का शौक था उसे
गिलास के खाली होने पर
जैसे चांदनी भर आए उसमें
वैसे भरता जाता था अपनी रूह

शून्य और अस्तित्व के बीच कभी
अंतर ना समझ पाता था वह
किन्तु खाली होते अपने चित्त से
कुछ कुछ लिखता जाता था दुरूह

क्या बचा उसके जाने से?
किसको खोया जाए?
शून्य अब भी वही है
किसे रोया जाए?

जाते जाते लिख गया शायद
इसी लिए दुःसह
अपना समाधि-लेख वह

“तुम्हें पा न सका
किन्तु सर्वस्व तो दे सकता हूँ
तुम्हें अपना न सका
तुम्हारा हो तो सकता हूँ
तुम्हें भीतर समा न सका
तुम में समाया तो जा सकता हूँ”

यज्ञ में एक और लौ डाल आया है
और तो सब धू-धू कर
राख और धूल को लौट आएँगे
बचा रहेगा यही सनातन

यही एक योग उसका
किंचित यही योगदान उसका

तुम भी जलते-जलते
प्रार्थना बन जाना
सुरभि और धूप की
अभीप्सा बन जाना

अग्नि की जैसे शून्य भी
सभी को अपने में करता परिवर्तित
मृत्यु-पूर्व उसी शून्य का
आवाहन बन जाना

वह कैसा व्यक्ति था
जो अपनी श्रद्धांजलि
स्वयं लिख गया

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