Sardi ke Din

सर्दी के दिन
याद हैं तुमको सर्दी के दिन?

ठन्डे-ठन्डे हाथों से जब
मां के गालों को छूते थे
कम्बल में दुबके मौसाजी से
करते धींगा-मस्ती
बिछी रजाई पे ही सो जाते
गर्मी से भी भाती नरमी
दादा की बीड़ी जैसे हम
सांसों से धुआं उड़ाते थे जब

सर्दी के दिन
याद हैं तुमको सर्दी के दिन

सपनों में भी भरते थे हम
मंजे और सद्दे की चरखी
लूटमार पतंगों की और
गलियों की भागा-दौड़ी
संक्रांति को उठ बैठते
मुंह-अँधेरे चार बजे ही
वो मारा वो काटा और
लाउड स्पीकरों की कमेंट्री

सर्दी के दिन
याद हैं तुमको सर्दी के दिन?

सिकते तन्दूरों की वो
उठतीं तरंगें
बाल्टी के आख़िरी लोटों में
स्मृत हर-हर गंगे
बुझते छाणों की आंचों में
पकती शकरकंदी
रेडियो से स्कोर सुनने पर
क्रिकेट खेलने की उमंगें

सर्दी के दिन
याद हैं तुमको सर्दी के दिन?

सरसों के खेतों का पीलापन
अमलतास के फूलों का बन
तिल और गुड़
घेवर के कंगन
मक्की मूली और लस्सी से
रोम-रोम में जागी सिहरन
भाप सिकोरों से उठती थी
प्यालों में दुनिया की ठिठुरन
सर्दी के दिन
याद हैं तुमको सर्दी के दिन

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