Mann ka aawara badal

मैं मन का आवारा बादल
उमड़-घुमड़ लहराऊँ,
अलग-अलग सोचों में पड़कर
नभ को गहराऊँ

दूर-दूर हूँ मंडराता मैं
क्षितिजों पार समंदर,
अफ्रीका के सहराओं और
विस्तृत फैली भू पर

हरियाली का मैं हूँ राजा
घिर आता हूँ पृथ्वी पर,
मेरा जीवन किन्तु मुझ-सा
तरल, सूक्ष्म और पल-भर

मेरे ऊपर चाँद-सितारे
नीचे-पीछे जन-मन सारे
मैं गूँजता जीवित जागृत
फिर भी विद्युत्-सा हूँ उन्मत्त

मैं मन का आवारा बादल
उमड़-घुमड़ लहराऊँ,
अलग-अलग सोचों में पड़कर
नभ को गहराऊँ

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