Astitva aur Shunyeta

अस्तित्व सफ़ेद चन्द्रमा है,
हँसता है टेढ॓ मुँह से,
मुस्कराता है मुझ पर
धूल-भरी शाम में
लेट जाता हूँ जब
खीज से भरा घास में,
नज़र पड़ती है मुझे घूर रहे
इस नग्न संसार पे
और मैं खिसिया जाता हूँ,
आँखों में आँखें डाल हँसता हूँ,
लकड़बग्घे की तरह क़ैद
फिर मानो ईश्वर के अनुदेश से
हवा अपने पिंजरे से मुक्त हो
फिर बहने लगती है और धीरे-धीरे
मैं भी खो जाता हूँ,
माथे के पसीने की तरह
और चाँद फिर छिप जाता है

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