Virasat me mila ek Ghar

किसी ने बताया मुझे
विरासत में मिला एक घर
एक खंडहर

जो मेरे विशाल संयुक्त परिवार का था
मेरा था भी नहीं भी

जहाँ मैं था इकाई मात्र
बहुतेरों में
अपनों में या ग़ैरों में

शायद एक ही ईंट होती मेरी
थोड़ा सा चूना
टपकती भित्ति का चित्र
जैसे मेरा चित्त

मेरा ही चेहरा मानो
मानवाकार
दो आँखों के सुराग़
नाक का टूटा पलस्तर
गालों की उखड़ती पपड़ियां

छितरे हुए पर्दे
पिचके कॉकरोच
जंग लगी कीलें
लपकती छिपकलियाँ

और शायद कुछ अपना सा
जागृत होते भी सपना सा

उसी टूटे से धंसे उखड़ते घर में
अधटंगा मैं
और मेरा टूटता नीरव
बिखरता मौन

प्रतिध्वनियों के विचार
घूमते हैं बार-बार चक्रव्यूह में
जिसमे फंसा मैं परीक्षित

बाहर निकलने की राह नहीं
लड़ता किन अपनों से

कैसे बनाऊँ इन घूमती स्मृतियों
गतिविधियों विचारों संवेदनाओं
अनुभूतियों भावनाओं के चक्रवाती समूह में
एक केंद्र-बिंदु
एक भीतरी आँख
जहाँ सब कुछ हो जाए स्थिर

वही घमासान महाभारत है चल रहा
आज तक
मैं भी और तुम भी अनायास
फंसे पड़े इस झंझावात में
अस्त-व्यस्त

क्या ढूंढ पाएँगे एक अवसर

इस भीषण आंदोलन में?

क्या शान्ति की क्रांति हो सकेगी
क्या पुनर्स्थापना हो पाएगी
शाश्वत उस विस्मृत की?

तब तक वही पलस्तर
जिसपे बिखरते टूटते ध्वस्त
तुम्हारे मेरे चेहरे
और भीतरी चक्रव्यूह

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