Lapata

लापता
एक अधेड़-आयु
वयस्क

अपने आप से
कहीं खोया-खोया
अन्यमनस्क

चेहरे पे झुर्रियों की ताज़गी
जिनमें छिपी मुस्कानें
अधजगी
जिसकी जीत है समर्पण

ध्यान से देखो किन्तु
तो शीशे के जमे प्रकाश में
एक और ताकता शीशा

दर्पण में एक और दर्पण

और कभी-कभी लगता
व्योम में चक्रमान
एक और व्योम

जिसकी स्थिति
परिस्थिति
सब विलुप्त

दो आँखें सामने
पीछे वही ठहरा प्रकाश

कितने सालों से ढूंढ रहा
अपने आप को
पर सभी घर पराये हैं

वह सिर्फ़ अचरज-भरा
की ऐसा क्यूं?
और जैसा भी है
कैसे वह यूं?

सभी रोशनियाँ साये हैं

देखते देखते
जानते जानते
वह फिर खो गया
क्या जाने कौन कहाँ किधर ताकता
लापता

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