by saurabh | Apr 24, 2018 | Hindi Poetry
Prarambh me hi Ant मेरे प्रारम्भ में ही मेरा अंत है उत्तरोत्तर उठते हैं गिरते हैं घर होते हैं विस्तीर्ण होते हैं विस्तृत स्थानांतरित ध्वस्त विस्थापित या उनके स्थान पर एक खुला मैदान या कारखाना या उपमार्ग नए भवन को नया पत्थर पुराने काष्ठ को नई अग्नि प्रज्ज्वल पुरातन...
by saurabh | Apr 24, 2018 | Hindi Poetry
Janamdin ki Bhent तुम्हारे जन्म दिवस पर नीरव में लपेटकर चुपचाप कुछ भेज रहा हूँ इस भेंट में आंसू हैं कुछ कुछ थोड़ा सा प्रायश्चित्त और बहुत सारा चित्त इसमें नमस्कार से जोड़े हुए हाथों की पूर्णता है कुछ आनंद की सुरभि बहुत सारी भूलों का सार और ढेर सारा आभार बहुत वजन है इस...
by saurabh | Apr 24, 2018 | Hindi Poetry
Dard Dard की कोई इन्तिहाँ नहीं होती वरना क्या चांदनी नहीं रोती Want new articles before they get published? Subscribe to our Awesome Newsletter. E-mail Address First Name Number...
by saurabh | Apr 24, 2018 | Hindi Poetry
Kaun Jaane कौन जाने कहाँ खो गया पानी का हुबाब रो गया एक सिफर-सी रूह मिट गयी अदना सा इक ख़्वाब सो गया Want new articles before they get published? Subscribe to our Awesome Newsletter. E-mail Address First Name Number...
by saurabh | Apr 23, 2018 | Hindi Poetry
Aangan me पीतल के पैमानों जैसी शाम ढली थी आँगन में हल्की-हल्की आग लगी थी लाल-गुलाबी आँगन में दुल्हन जैसी चलती किरणें शीश झुकाए सहमी-सीं पाजेबों की खनखन जैसी नई रोशनी आँगन में Want new articles before they get published? Subscribe to our Awesome Newsletter. E-mail...
by saurabh | Apr 23, 2018 | Hindi Poetry
Chaand hai ya Dil चाँद है या दिल? आग है कि खून? हो नब्ज़ हवा, आँखें अंगुलियाँ, रात है कि तेरा छिपा बदन? चाँद है या दिल? सफ़ेद चादर पे सफ़ेद कलाई! बर्फ-सी ठिठुरती, आग-सी गर्म, कांपती आँखों की बीमार शर्म! चाँद है या दिल? Want new articles before they get published?...